रहने दो कि अब तुम भी मुझे पढ़ न सकोगे,
बरसात में काग़ज़ की तरह भीग गयी हूँ।
हर गम निभा रही हूँ खुशी के साथ,
फिर भी आँसू आ ही जाते हैं हँसी के साथ।
इश्क की नासमझी में हम सब कुछ गवां बैठे,
जरुरत थी उन्हें खिलौने की हम अपना दिल थमा बैठे।
तन्हाई हो लेती है साथ मेरे,
साये से जुदा होते ही
इसलिए अँधेरे में चलने से बेहद डरने लगी हूँ मैं।
दर्द भरी शायरियाँ
मैं न कहूँगा दांस्ता अपनी..
फिर कहोगे सुनी नहीं जाती।
जो दिखता हो! वही सच हो जरूरी नहीं हैं,
कभी कभी शांत चेहरे के पीछे, दर्द भी छुपा होता हैं।
हमने ख़ामोशी के लिफाफे में भेजे थे दिले जजबात,
वे करते रहे किसी और से अपने दिल की बात।